आचार्य चाणक्य कौन थे

चाणक्य निति, सम्पूर्ण चाणक्य नीति | Chanakya Niti Book PDF Hindi

चाणक्य निति, सम्पूर्ण चाणक्य नीति | Chanakya Niti Book PDF Hindi

Chanakya Niti: यदि आप बेहतर जीवन जीना चाहती हैं और जीवन से संबंधित नीतियों को सीखना चाहते हैं तो, इसके लिए चाणक्य नीति सबसे उपयोगी मानी जाती है। चाणक्य नीतियों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति जिंदगी में कभी भी परेशान नहीं होता है और ना ही असफल होता है।

आचार्य चाणक्य के कुछ खास अनमोल वचन है, जिनको जीवन में उतारने से आप जीवन को सरल तरीके से जी सकते हैं। चाणक्य नीति के माध्यम से आपको मुश्किलों से निकलने का रास्ता आसानी से मिल जाता है। चाणक्य नीति खेती के असली सफलता वही है जो, दूसरों को भी सफल बनाने के लिए प्रेरित करें। ऐसे लोगों पर धन की देवी लक्ष्मी जी भी काफी प्रसन्न रहती है, वही उनकी कामयाबी से रखने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है। इस तरह की कई चाणक्य नीतियां आचार्य चाणक्य द्वारा कही गई है, जिसे हम आपको बताने वाले हैं।

आचार्य चाणक्य कौन थे

आचार्य चाणक्य कौन थे

वैसे तो हम सभी ने चाणक्य का नाम जरूर सुनना है, लेकिन उनके बारे में विस्तार से यदि आप नहीं जानते ही तो हम आपको बता दें कि, चाणक्य मगध सीमावर्ती गांव के एक साधारण ब्राह्मण के पुत्र थे। उनके पिता का नाम चणक था पिता ने उनका नाम है बचपन में कोतिली रखा था। वही अपनी पहचान छुपाने के लिए उन्होंने अपना नाम विष्णु गुप्त रख लिया था। उन्होंने ही बाद में कौटिल्य नाम से अर्थशास्त्र लिखा और आर नाम के कामसूत्र को भी उन्होंने ही लिखा है।

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उनके पिता मगध के राजा से असंतुष्ट थे जनक किसी भी तरह महामंत्री के पद पर पहुंचकर राजू को विदेशी आक्रांता उसे बचाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने अपने मित्र सेक्टर से मंत्रणा कर धनानंद को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई थी, लेकिन गुप्तचर के द्वारा मोहम्मद के राक्षस और कात्यायन कोई षड्यंत्र का पता लग गया और उन्होंने चणक को बंदी बना लिया और राजगढ़ में खबर फैला दी कि देशद्रोह के अपराध में ब्राह्मण की हत्या की जाएगी।

पिता की म्रत्यु के बाद चाणक्य ने शपथ ल थी, और उन्होंने अकेले पुत्र ने पिता का दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गंगा का जल हाथ में लेकर शपथ ली- ‘हे गंगे, जब तक हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा खुली ही रखूंगा। मेरे पिता का तर्पण तभी पूर्ण होगा, जब तक कि हत्यारे धनानंद का रक्त पिता की राख पर नहीं चढ़ेगा।।।। हे यमराज! धनानंद का नाम तुम अपने लेखे से काट दो। उसकी मृत्यु का लेख अब मैं ही लिखूंगा।

वह एक महान शिक्षक, अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, शाही सलाहकार, राजनीतिज्ञ और मार्गदर्शक थे। आचार्य चाणक्य ब्राह्मण थे, उन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अर्थशास्त्र किताब लिखी थी जो बहुत प्रसिद्ध है। उसी में से हम आपको उनकी नीतियों को भी बताने वाले है।

चाणक्य नीतिया

चाणक्य कहते हैं कि जो समय बीत चुका है उस पर रोने या उसे बार-बार याद कर पछताना बेकार है. इंसान ही गलती करता है. ये गलतियां दोबारा न हो इसलिए इनसे सबक लेकर वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने की कोशिश करें और भविष्य की रणनीति पर ध्यान दें.

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चाणक्य के अनुसार शत्रु को कमजोर समझने की भूल न करें. उसे मात देने के लिए उसकी ताकत का सही अंदाजा लगाना बहुत जरूरी है तभी आप उस पर वार कर जीत पाएंगे.

जल्दबाजी में आपका ही दांव उलटा पड़ सकता है. दुश्मन को पराजित करना है तो एकजुट होकर कार्य करें. एकता में अपार शक्ति होती है. जब बुरा वक्त चल रहा हो तो एक दूसरे की हौंसला अफजाई करते रहें. ये व्यक्ति को कमजोर होने से बचाती है.

चाणक्य नीति कहती है कि जो मित्र मुंह पर मीठा और पीठ पीछे आपका ही अहित सोचता हो उसे त्यागना ही अच्छा है, क्योंकि जो सच्चे दोस्त होते हैं वह कभी गिरने नहीं देते न किसी की नजरों में और न ही किसी के कदमों में. गलती पर साथ छोड़ने वाल तो जीवन में बहुत मिलते हैं लेकिन आपकी गलती पर गौर उसे सही करने और सदा साथ निभाने वाला सच्चा मित्र कहलाता है. इन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

खत्म करें असफलता का डर
चाणक्य नीति के अनुसार, जीवन में सफलता पाने के लिए असफलता के डर को भगाना बेहद जरूरी है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि असफलता का डर हावी हो जाने के बाद मनुष्य कभी सफल नहीं हो सकता। ऐसे में सफल होने के लिए आज ही अपने मन से असफल होने के डर को निकाल फेंकें।

किसी को न बताएं अपनी प्लानिंग
चाणक्य नीति के अनुसार, किसी भी काम को शुरू करने से पहले उसके बारे में आपने जो भी प्लानिंग बनाई है उसके बारे में किसी और से बात नहीं करनी चाहिए। इससे सामने वाला आपको नुकसान पहुंचा सकता है

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अत्यधिक ईमानदार न बनें
आपकी ज्यादा ईमानदारी आपके लिए मुसीबत बन सकती है। इसलिए ईमानदारी उतनी ही रखनी चाहिए, जितने में किसी का नुकसान न हो। कई बार ज्यादा ईमानदारी के चक्कर में चक्कर में लोग अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सीधे पेड़ को सबसे पहले काटा जाता है, इसलिए ज्यादा सीधा बनने से भी बचें।

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