चतुर नाई
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चतुर नाई की कहानी | Very Short Hindi Story | Moral Stories | Chatur Nai

चतुर नाई की कहानी | Very Short Hindi Story | Moral Stories | Chatur Nai

Chatur Nai: दोस्तों कहानियां सुनना और पढ़ना हर किसी को पसंद होता है। हर कोई अच्छी अच्छी और मजेदार कहानियां पढ़ना और सुनना चाहता है। वही आज हम आपके लिए कुछ ऐसी ही कहानी लेकर आए हैं जिसे पढ़कर आप भी खुश हो जाएंगे और आपको अपने बचपन के दिन याद आ जाएंगे।

चतुर नाई

चतुर नाई

आपको बता दें कि हम सभी ने बचपन के समय में तोता मैना जैसी कई कहानियां पढ़ी है और सुनी है। वहीं हमने टीवी में मालगुडी डेज की भी कहानियों को देखा है। इसके साथ ही हमने कई बार विक्रम बेताल, अलिफ लैला, चंद्रकांता जैसी कहानियों को भी अपने दादा-दादी और नाना-नानी से सुनी है। आज हम आपके लिए एसे ही चतुर नाई की कहानी लेकर आए हैं जो कि, एक शिक्षाप्रद कहानी है, जिसे आप अपने बच्चों को भी पढ़कर सुना सकते हैं और इसका आनंद आप खुद भी ले सकते हैं, तो चलिए शुरू करते हैं।

चतुर नाई की कहानी

किसी समय रायगढ़ रियासत में राजा चक्रधर सिंह राज्य करते थे। उनकी अनेक सनक थी। जिस समय राजा को हजामत बनवानी होती उस दिन सुबह-सुबह नगर के 8-10 नाई अपने औजारों के साथ महल में उपस्थित होते। जब राजा हजामत बनवाने आते। तब उनके महामंत्री, सेनापति और खुद सैनिक भी रहते। पलटन को देख बेचारे नाइयों को तो वैसे ही पसीना छूटता था क्योंकि थोड़ी गलती हुई नहीं कि कोड़े पड़ने शुरू।

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राजा भी कम न थे, न जाने उन्हें क्या मजा आता कि एक नाई से सामने के बाल तो दूसरे से बाएँ के, तीसरे से दाएँ के बाल कटवाते थे। परन्तु चौथे से पीछे के बाल कटवाते तो उस बेचारे नाई की शामत आ जाती। एक बार ऐसा हुआ कि एक नाई नया-नया ही उनके राज्य में आया था। उसे राजा की हजामत के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। संयोग से राजा ने उसे पीछे के बाल काँटने को कहा। नया नाई बड़ी उलझन में फँस गया। उसने बड़ी हिम्मत करके नम्रता के साथ कहा – महाराज! मुझे आपके सर के पीछे के बाल काटने हैं तो जरा…..

‘जरा क्या?’

 

‘थोड़ा हुजूर क्या।’

 

‘अबे हुजूर क्या?’

 

‘थोड़ा हुजूर।।।सर झुकाइए ना।’

 

क्या कहा? राजा ने लाल-लाल आंखें दिखाते हुए कहा – ”मेरा सर और उस पर तेरा अधिकार?” बेवकूफ राजा तू कि मैं? एक तरफ तो तू मुझे महाराज कहता है और दूसरी तरफ सर झुकाने के लिए भी कहता है? सेनापति इस बदतमीज को 25 कोड़े मारे जाएँ।

 

नाई 25 कोड़े की मार के डर से भाग खड़ा हुआ। आगे-आगे नाई, उसके पीछे राजा, राजा के पीछे महामंत्री, महामंत्री के पीछे सैनिक। नगरवासी यह अनोखा नजारा देख हंसने लगे। किसी तरह नाई को पकड़ा गया। उसने राजा के बाल बनाए। उसके बाद राजा ने बड़े प्रेम से  उसे 25 कोड़े लगाने के लिए एक सैनिक से कहा। 25 कोड़े की मार के बाद वह नाई कराहते हुए जोर-जोर से रोने लगा। राजा भी आश्चर्यचकित होकर बोले-”आज तक कोई भी नाई 25 कोड़े की सजा के बाद तो नहीं रोया, जितना तू चिल्ला रहा है।”

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महाराज आपने तो इस सैनिक को हल्के से कोड़े मारने के लिए कहा था लेकिन यह तो जोर-जोर से कोड़े मारकर अपनी जाति-दुश्मनी निकाल रहा है।

कैसी जाति-दुश्मनी?

महाराज कुछ दिन पहले इसकी बकरी मेरी बाड़ी की सारी सब्जी खा गई थी। मैंने उसकी बकरी की पिटाई की और आज यह उसका बदला इस तरह निकाल रहा है।

सेनापति इस सैनिक को सैनिक विधि के अनुसार जो दण्ड दे सको दे दो। अगर नाईयों को इस तरह पीटा जाएगा तो कल को मेरे राज्य में कोई भी नहीं रहेगा।

महामंत्री नाई को 5 रजतमुद्रा और एक स्वर्ण मुद्रा दी जाए।

जो आज्ञा महाराज! महामंत्री ने कहा।

 

महाराज मेरी समझ में नहीं आता कि सजा के साथ यह ईनाम कैसा?

 

राजा बोले – ”तु मेरे राज्य में नया-नया आया है। तू ने अपने राजा का सर झुकाया, इसलिए तुझे इसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए। यह सजा तो यहाँ हमेशा दी जाती है। मूर्ख, मैं नहीं जानता था कि इतने कोड़े खाने के बाद कुछ दिन तू काम करने योग्य न रहेगा। मैं तेरा राजा हूं। प्रजापालक हूं। मैं जब सजा दे सकता हूं तो ईनाम भी दे सकता हूं फिर मेरे कारण तेरे बाल-बच्चे क्यों भूखे मरे? इसीलिए आर्थिक सहायता के रूप में तुझे ईनाम भी दिया जा रहा है। सैनिकों इसे उठाकर राजकीय दवाखाने ले जाओ।”

 

और इस तरह उस चतुर नाई को सजा के साथ-साथ ईनाम भी मिल गया।

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