कबीर के दोहे | Download Kabeer Ke Dohe With Hindi Meaning PDF
कबीर के दोहे | Download Kabeer Ke Dohe With Hindi Meaning PDF
Kabeer Ke Dohe: हिंदी काव्य ग्रंथों को लिखने में कई निपुण कवियों के नाम सामने आते ही हैं, वही हिंदी काव्य की प्रेम धारा के स्तंभ कहे जाने वाले कवि कबीर दास जी ने भी कई रचनाएं की है, जिसमें से उनकी सभी रचनाओं में कबीर के दोहे सबसे प्रमुख माने जाते हैं।
संत कबीर दासजी
उन्होंने बेहद अल्प संख्या में ही कविता की शैली में काव्य की रचना की है। यहां आपके लिए हम आप संत कबीर की कुछ रचनाओं तथा दोनों को बताने जा रहे हैं, जिन्हें पढ़कर शायद आप भी उनसे कुछ सीख पाए।
हमने आपको आज की इस पोस्ट में कबीर के दोहों के बारे में बताया है, जिनमें उनकी कई कविताएं को संग्रहित किया गया है। कबीर दास जी वह भारतीय संत और राजस्व अधिकारी थे, जिन्होंने कई तरह की रचनाओं की है और उन्होंने भक्ति आंदोलन को भी प्रभावित किया है।
कबीर दास जी का जीवन परिचय
आपको बता दें कि कबीर दास जी का जन्म 15 शताब्दी के दौरान हुआ था। वह 15वीं शताब्दी सावंत 1455 में राम तारा काशी में जन्मे थे। उनके गुरु का नाम संत आचार्य रामानंद जी आंजना ने उन्हें शिक्षा देती हैं, कबीर दास जी की पत्नी का नाम रोहित है। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। वहीं उनका एक पुत्र और एक पुत्री देवी पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। कबीर दास की वाणी को राखी संबंध और रमणी तीनों रूपों में लिखा गया है।
वैसे तो कबीर दास जी ईश्वर में कभी आस्था रखते थे और ईश्वर को भी मानते थे। वह किसी भी प्रकार के कर्मकांड का वह विरोध करते थे। कबीरदास बेहद ज्ञानी थे और स्कूली शिक्षा ना प्राप्त करते हुए उनके पास भोजपुरी हिंदी अवधी जैसे अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन भाषाओं में कई रचनाएं की है।
कौन थे कबीर दास?
कबीर दास (1398-1518) 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, और उनके छंद सिख धर्म के ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब, संत गरीब दास के सतगुरु ग्रंथ साहिब और कबीर सागर में पाए जाते हैं।
कबीर के दोहों का महत्व
कबीर दास जी ने अपने दोनों में कई तरह की रचनाएं की है, वहीं उनके दोहे सबसे ज्यादा छात्रों को शिक्षा प्रदान करने में उपयुक्त होते हैं। हिंदी के विख्यात रचनाकार संत कबीर दास जी को आज हर कोई जानता है और उनके दो कि स्कूलों कॉलेजों में भी पढ़ाया जाता है, आज उनके द्वारा लिखे गये दोहे कई तरह की शिक्षाएं प्रदान करते हैं।
कबीर के दोहे
कबीर दास
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥
तिनका कबहुं ना निंदए, जो पांव तले होए।
कबहुं उड़ अंखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥
गुरु गोविंद दोऊं खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥
दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥