श्री काली चालीसा PDF | Shri Kali Chalisa ke Fayde काली चालीसा के अद्भुत फायदे
श्री काली चालीसा PDF | Shri Kali Chalisa ke Fayde काली चालीसा के अद्भुत फायदे
मां काली का या मां काली हिंदू धर्म की एक प्रमुख देशों में से एक मानी जाती है. वह मृत्यु काल और परिवर्तन की देवी है. यह सुंदरी रूपाली आदि शक्ति दुर्गा माता का विकराल और भाई प्रतिरूप है, जिसकी उत्पत्ति असुरों के सहार के लिए हुई थी, उन्होंने कई अवसरों और संहार किया है, जिसकी वजह से पृथ्वी पर अशांति फैलाने वाले असुरों का नाश हुआ है. जब कोई भी देवी और देवता और असुरों का नाश नहीं कर पा रहे थे उस समय पृथ्वी की रक्षा के लिए माता आदिशक्ति दुर्गा नहीं विकराल रूप धारण किया था जिसे काली का रूप कहा गया है.
मां काली
मां कालिका की पुजा का भी विशेष महत्व माना गया है इसे सबसे ज्यादा बंगाल उड़ीसा और असम में काफी पूजा जाता है वही काली को शक्ति परंपरा के 10 महाविद्यालयों में से एक भी माना गया है वैष्णो देवी में दही भिंडी माता महाकाली की स्थापित है
‘काली’ की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए है जो दानवीय प्रकृति के हैं, जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अतः माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु और पूजनीय हैं। इनको महाकाली भी कहते हैं।
काली माता की पूजा
सनातन हिन्दू धर्म के शाक्त सम्प्रदाय के अलावा तांत्रिक बौद्ध और अन्य सम्प्रदायों में भी काली की पूजा होती है। इन्हें तांत्रिक बौद्ध धर्म में भयानक रूप वाली योगिनियों , डाकिनियों जैसे वज्रयोगिनी और क्रोधकाली की पूजा होती है। इनकी पूजा-अर्चना के लिए विधि-विधान से पूजा पाठ किया जाता है, वही काली चालीसा का पाठ भी किया जाता है।
काली चालीसा kali chalisa करने के फायदे
काली चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति कई सुखों की प्राप्ति करता है और कई समस्याओं से छुटकारा पा सकता है। इसके साथ ही मां काली चालीसा के शौर्य पराक्रम है, उनकी महानता का वर्णन आपको काली चालीसा में पढ़ने को मिलता है। काली चालीसा की नियमित पाठ से सच्चे मन से और पूर्ण श्रद्धा भक्ति से आपको कहीं तरह के फायदे मिलते हैं, जैसे कि,
- अष्टभुजा मां काली को सुखदायक कहां गया एचडी काली चालीसा के पाठ से सभी प्रकार के सुखों मैं आपके घर में वृद्धि होती है।
- काली चालीसा के पाठ से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
- काली शत्रुओं का नाश करने वाली देवी है, काली चालीसा के पाठ में से मां काली प्रसन्न होती है और आपको कलयुग में कली के सारे प्रभाव से दूर रखती है।
- काली चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों की मां सदैव सभी तरह से रक्षा करती है।
- यह सभी तरह के संकट परेशानी और मुसीबत आने पर आपको परेशानी से दूर रखती है।
- जो व्यक्ति सच्चे मन से मां काली चालीसा का पाठ करता है। वह इस संसार के सभी भय और बंधन से मुक्त हो जाता है।
- काली चालीसा का पाठ करने से मृत्यु उपरांत व्यक्ति स्वर्ग को प्राप्त करता है।
- जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मान चालीसा का पाठ करता है, उससे सभी मनोकामना की पूर्ति होती है और मनवांछित फल प्राप्त होता है।
श्री काली चालीसा PDF
॥॥ दोहा ॥॥
जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ॥
॥ चौपाई॥
अरि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥4॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥5॥
शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥8॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥11॥
त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥13॥
ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥14।
बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥16॥
मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥20॥
॥॥दोहा॥॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥
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