कालिदास की जीवनी

महान कवी कालिदास की जीवनी, केसे बने पंडित और किस राजकुमारी से की शादी – Kalidas ki Kahani

महान कवी कालिदास की जीवनी, केसे बने पंडित और किस राजकुमारी से की शादी – Kalidas ki Kahani

Kalidas ki Kahani: कालिदास के बारे में हम सभी ने कभी ना कभी जरूर सुना होगा वह संस्कृत भाषा के महान कवि और एक नाटककार थे। उन्होंने अभिज्ञान शकुंतलम नाम की एक प्रसिद्ध नाटक की रचना भी की है, जिसका अनुवाद विश्व के अनेक भाषाओं में हो चुका है। वहीं मेघदूत कालिदास की रचना काफी प्रसिद्ध रचना है। यह एक दूतवाक्य है। इसमें यक्ष की कहानी को दर्शाया गया है, जिसे अलकापुरी से निष्कासित कर दिया गया है एक से बादलों की मदद से अपने प्रेम संदेश अपने तक पहुंचाता है।

कालिदास की जीवनी

उनका यह ग्रंथ भारतीय साहित्य में भी कार्य के प्रसिद्ध हुआ है। कालिदास ने अपनी रचनाओं में प्रकृति का काफी सुंदर वर्णन किया है सरल मधुर और लल्लन कार्यों की भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उनकी रचनाओं में श्रंगार रस को प्राथमिकता दी गई है कालिदास के समकालीन कवि बाणभट्ट ने उनकी रचनाओं की भी प्रशंसा की है।

जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

कालिदास का जन्म वर्ष किसी को ज्ञात नहीं है, विद्वानों में इसे लेकर बहुत विवाद है। उनके जन्म स्थान के बारे में भी सही जानकारी उपलब्ध नहीं है। मेघदूत ग्रंथ में कालिदास ने उज्जैन का वर्णन विशेष रूप से किया है, इसलिए कुछ विद्वानों का मानना है कि कालिदास का जन्म उज्जैन में हुआ था।

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वही कुछ का मानना है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था। उन्होंने मेघदूत, कुमारसंभवम औऱ रघुवंश जैसे प्रसिद्द ग्रंथों की रचना की। किंवदंतियों के अनुसार कालिदास देखने में सुंदर, हृस्टपुष्ट और आकर्षक थे। वे राजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक थे।

कालिदास की कहानी

कालिदास की शादी मालव राज्य की अत्यंत बुद्धिमान और रूपवती राजकुमारी विद्योत्तमा से हुई थी। राजकुमारी का यह प्रण था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा। दूर दूर से आए विद्वान उससे हार गए तो उन विद्वानों के मन में ग्लानि उत्पन्न हो गई। इसका राजकुमारी से बदला लेने के लिए उन्होंने एक चाल चली और मूर्ख युवक की खोज प्रारंभ की। तब एक जंगल में उन्हें एक झाड़ की शाखा पर बैठा एक युवक नजर आया जो उसी शाखा को काट रहा था। विद्वानों ने उसे युवक जो कि कालिदास था उसे सीखा पढ़ाया और कहा कि तो मौन में ही उत्तर देना। उन्होंने उससे कहा यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक सुंदर राजकुमारी से हो जाएगा। इसके बाद कालिदास को सुंदर वस्त्र पहनाकर उसे विद्वाने के रूप में राजमहल में शास्त्रार्त के लिए प्रस्तुत कर दिया और विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा। विद्योत्तमा मान गई और शास्त्रार्थ शुरू हुई।

विद्योत्तमा ने अंगुली उठाई। उसका तात्पर्य था, ‘ईश्वर एक है और वह अद्वैत है।’ कालिदास ने समझा की यह मेरी आंख फोड़ना चाहती है तो उसने भी तक्षण दो अंगुली उठा। अर्थात् तुम तो एक आंख फोड़ने की बात कर रही हो, मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। पंडितों ने कालिदास की ओर से राजकुमारी को समजाया कि ‘ईश्वर एक है। आपने ठीक कहा, पर प्रकृति और विश्व के रूप में वही अन्य रूप धारण करता है। अतः पुरुष और प्रकृति, परमात्मा और आत्मा दो-दो शाश्वत हैं। विद्योत्तमा इससे प्रभावित हुई और फिर विद्योत्तमा ने हथेली उठाई। पांचों अंगुलियां ऊपर की ओर उठी थीं। उनका तात्पर्य था, ‘आप जिस प्रकृति, जगत् जीव या माया के रूप में द्वैतवाद को स्थापित कर रहे हैं, उसकी रचना पंचत्तत्व से होती है। ये पंचतत्त्व हैं- पृथ्वी, पानी, पवन, अग्नि और आकाश। ये सभी तत्त्व भिन्न और अलग हैं, इनसे सृष्टि कैसे हो सकती है?

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कालिदास की ने समझा की यह राजकुमारी मुझे थप्पड़ मारना चाहती है। इसीलिए कालिदास ने थप्पड़ के जवाब में मुक्का दिया दिया। विद्वानों ने राजकुमारी को बताया कि इनके कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक पंचतत्त्व अलग-अलग रहेंगे, सृष्टि नहीं होगी। पंचतत्त्व करतल की पंचांगुलि है। सष्टि तो मुष्टिवत् है। मुट्ठी में सभी मिल जाते हैं तो सृष्टि हो जाती है। यह सुनकर सभा-मंडप की दर्शक दीर्घा से फिर तालियां बजने लगी। विद्योत्तमा को अंततः अपनी हार माननी पड़ी और उसने कालिदास से विवाह कर लिया।

उपरोक्त कहानी के अलावा यह भी कहा जाता है कि जब पत्नी को यह पता चला तो उन्होंने कालिदास को संस्कृत की शिक्षा दी। व्याकरण, छंद शास्त्र, निरुक्त ज्योतिष और छहों वेदांग, षड्दर्शन आदि सभी की शिक्षापूर्ण करने के बाद कालिदास राजा विक्रमादित्य के दरबार में उनके नवरत्न में से एक बन गए।

केसे बने पंडित?

कुछ दिनों बाद जब राजकुमारी विद्योत्मा को जब कालिदास की मंद बुद्धि का पता चला तो वे अत्यंत दुखी हुईं और कालिदास जी को धित्कारा और यह कह कर घर से निकाल दिया कि सच्चे पंडित बने बिना घर वापस नहीं आना।

फिर क्या था पत्नी से अपमानित हुए कालिदास ने विद्या प्राप्त करने का संकल्प लिया और सच्चे पंडित बनने की ठानी और इस संकल्प के साथ वे घर से निकल प़ड़े। और मां काली की सच्चे मन से उपासना करने लगे।

जिसके बाद मां काली के आशीर्वाद से वे परम ज्ञानी और साहित्य के विद्धान बन गए। इसके बाद वे अपने घर लौटे, और अपनी पत्नी को आवाज दी, जिसके बाद विद्योत्मा दरवाजे पर सुनकर ही समझ गईं कि कोई विद्धान व्यक्ति आया है।

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इस तरह उन्हें अपनी पत्नी के धित्कारने के बाद परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे महान कवि बन गए। आज उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाने लगी यही नहीं संस्कृति साहित्य में अभी तक कालिदास जैसा कोई दूसरा कवि पैदा ही नहीं हुआ।

 

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