पंचतंत्र की कहानियाँ

पंचतंत्र की कहानियाँ | Panchtantra Ki Kahaniya Hindi PDF Download

पंचतंत्र की कहानियाँ | Panchtantra Ki Kahaniya Hindi PDF Download

Panchtantra Ki Kahaniya: बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए सबसे ज्यादा स्कूलों में पंचतंत्र की कहानियों को बताया जाता है. पंचतंत्र नीति कथा और कहानियों का संग्रह है, जिसके माध्यम से बच्चों को कई तरह की शिक्षा मिलती है. आपको बता दें कि इस पंचतंत्र की रचना आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा की गई है.

पंचतंत्र की कहानियाँ

पंचतंत्र की कहानियाँ

पंचतंत्र की कहानियां बच्चों के साथ-साथ बड़े भी रुचि लेते हैं. वह सभी को पसंद भी आती है पंचतंत्र में की गई जितनी भी कहानियां है. उसके अंदर किसी ना किसी तरह का कोई मोल छुपा होता है और जिससे कि हमें शिक्षा प्राप्त होती है. इसकी हर एक कहानी हमें एक अलग ही सीख प्रदान करती है.

पंचतंत्र की कहानी बच्चे बड़े चाव से पढ़ते हैं, तथा सीख लेते हैं. पंचतंत्र की कहानियां ऐसी भी है जो कि, हिंदी में कहानी लेखन में दी जाती है तथा इसके साथ-साथ कई परीक्षाओं में भी पंचतंत्र की कहानियों के बारे में पूछा जाता है. आज हम आपको कुछ ऐसी ही आकर्षक कहानियों को यहां पर बताने वाले ही साथ ही आप इन कहानियों को आ पीडीएफ फाइल में भी डाउनलोड कर सकते हैं.

आचार्य विष्णु शर्मा के बारे में –

आपको बता दे की, संस्कृत के लेखक विष्णु शर्मा पंचतंत्र संस्कृत की नीति पुस्तक के लेखक माने जाते हैं। जब यह ग्रंथ बनकर तैयार हुआ तब विष्णु शर्मा की उम्र 40 साल थी। यह दक्षिण भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे। एक राजा के 3 मूर्ख पुत्र थे जिनकी जिम्मेदारी विष्णु शर्मा को दे दी गई विष्णु शर्मा को यह पता था कि यह इतने मूर्ख हैं कि, इनको पुराने तरीकों से नहीं पढ़ाया जा सकता तब उन्होंने उनको सिखाने के लिए जंतु कथाओं से पढ़ाने का निश्चय किया। पंचतंत्र को पांच समूह में बनाया गया जो 2000 साल पहले बना। महामहोपाध्याय पं॰ सदाशिव शास्त्री के अनुसार पंचतन्त्र के रचयिता विष्णुशर्मा चाणक्य का ही दूसरा नाम था। इसके आधार पर उनके अनुसार पंचतन्त्र की रचना चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ही हुई है और इसका रचना काल 300 ई.पू. माना जा सकता है।

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पंचतंत्र के भाग

पंचतंत्र को मुख्य रूप से मुपांच भागों में बांटा गया हैं, जिसमे शामिल है –

मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव)

मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति या उसके लाभ)

संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे या उल्लुओं की कथा)

लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)

अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठाएं)

पंचतंत्र की कहानिया

टपका का डर

बरसात का दिन था। चारों ओर पानी बरस रहा था । जंगल में बुढ़िया का घर भीग रहा था । जल्दी ही बुढ़िया का घर टपकने लगा । बुढ़िया परेशान हो उठी । परन्तु करती भी क्या ? छप्पर को छाए कौन ?

थोड़ी देर में ओले भी पड़ने लगे । बेर बराबर ओले ! उधर एक बाघ ओलों की मार से परेशान हो उठा । कूदते-फाँदते वह बुढ़िया के घर के पास पहुँचा । बुढ़िया अन्दर चावल पका रही थी । चूल्हे पर पानी टपक रहा था, टप-टप। वह झुंझला उठी और बोली – “मुझे टपका से इतना डर लगता है जितना बाघ से भी नहीं।”

बाघ ने सोचा बुढ़िया मुझसे तो नहीं डरती मगर टपका से डरती है। जरूर टपका मुझसे भी बड़ा जानवर होगा। बस इतना सोचते ही बाघ घबराया और सिर पर पैर रखकर भाग गया ।

शिक्षा – मुसीबत के समय हमेशा चतुराई से काम करना चाहिए।

चतुर चूहा

एक चूहा था। वह रास्ते पर जा रहा था। उसे कपड़े का एक टुकड़ा मिला। वह उसे लेकर आगे बढ़ा । उसने एक दरजी की दुकान देखी । दरजी के पास जाकर उसने कहा

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चूहा : दरजी रे दरजी ! इस कपड़े की टोपी सी दे ।
दरजी :यह कौन बोल रहा है ?
चूहा : मैं चूहा;, चूहा बोल रहा हूँ । इसकी एक टोपी सी दे चल….. रास्ता नाप । वरना कैंची उठाकर मारूँगा ।
दरजी : चल… रास्ता नाप। वरना कैची उठा कर मारूंगा ।
चूहा: अरे ! तू मुझे डरा रहा है।
कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बुलाऊँगा, तुझे खूब पिटवाऊँगा, और तमाशा देखूँगा ।
यह सुन दरजी डर गया। उसने झटपट टोपी सी दी ।
टोपी पहनकर चूहा आगे बढ़ा। रास्ते में कशीदाकार की दुकान देखी। चूहे को टोपी पर कशीदा कढ़ाने की इच्छा हुई ।।
चूहा : भाई ! मेरी टोपी पर थोड़ा कशीदा काढ़ दे। कशीदाकार ने चूहे की ओर देखा । फिर उसे धमकाया और कहा ‘चल… चल… यहाँ किसे फुरसत है !”
चूहा : अच्छा, तो तू भी मुझे भगा रहा है, लेकिन सुन,
कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बुलाऊँगा, तुझे खूब पिटवाऊँगा, और तमाशा देखूगा।
यह सुन कशीदाकार घबराया। उसने चूहे को कचहरी में जाने से रोका। उससे टोपी लेकर उस पर अच्छा कशीदा काढ़ दिया। चूहा तो खुश हो गया ।

शिक्षा: जीवन में किसी को भी छोटा नहीं समझना चाहिए

लालची मित्र

किसी गाँव में दो मित्र रहते थे। एक बार उन्होंने किसी दूसरी जगह जाकर धन कमाने की सोची। दोनों यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में जंगल पड़ता था। जब वे जंगल से गुजर रहे थे, तो उन्हें एक भालू अपनी ओर आता दिखाई दिया। दोनों मित्र डर गए। उनमें से एक को पेड़ पर चढ़ना आता था. वह भालू से बचने के लिए पेड़ पर चढ़ गया, पर दूसरा नीचे रह गया। जब उसे भालू से बचने का कोई रास्ता न सूझा तो साँस बंद करके जमीन पर लेट गया। उसने अपनी साँस को इस तरह रोक लिया मानो वह मर गया हो।

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भालू उसके नजदीक आया। उसने जमीन पर लेटे हुए मित्र को सूँघा और उसे मरा हुआ जानकर चल दिया। क्योंकि भालू मृत जीव को नहीं खाता जब भालू उसकी आँखों से ओझल हो गया तो वह उठ गया और तब पेड़ पर बैठा मित्र भी नीचे उतर आया। उसने पूछा, “मित्र! मुझे बेहद खुशी है कि तुम्हारी जान गई। पर एक बात बता, भालू ने तेरे कान में क्या कहा?”

दूसरा मित्र अपने मित्र से पहले ही नाराज था। वह उसे उसकी गलती का अहसास कराना चाहता था इसलिए बोला, “मित्र भालू ने मुझे एक बहुत ही काम की बात कही है। उसने कहा है कि ऐसे मित्र का साथ छोड़ दो, जो मुसीबत के समय तुम्हारा साथ न दे और तुम्हें अकेला छोड़ जाए।” अपने मित्र की बात सुनकर पहला मित्र बहुत लज्जित हुआ।

शिक्षा-सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति में ही होती है।

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