श्रीमद् भागवत पुराण

सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण के सभी 12 स्कंध PDF, 12 Sections of The Entire Shrimad Bhagwat Mahapuran

सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण के सभी 12 स्कंध PDF, 12 Sections of The Entire Shrimad Bhagwat Mahapuran

हिन्दू ग्रंथो में भगत गीता का काफी महत्व बताया गया है, वहीं श्री भागवत महापुराण को आज विश्व में पढ़ा जाता है। श्रीमद्भागवत की प्रेरणा नारदजी से वेदव्यास जी को मिली थी। श्रीमद् भागवत ग्रंथ लिखा गया है। श्रीमद्भागवत में 335 अध्याय वही या व्यास जी द्वारा हटा पुराणों में रचित किया गया है जो कि, एक श्रेष्ठ पुराणों में से एक माना जाता है।

श्रीमद् भागवत पुराण

श्रीमद् भागवत पुराण

श्रीमद् भागवत कथा में 18000 श्लोक 335 अध्याय 12 स्कंध शामिल है, जिनमें अलग-अलग रूप से जीवन उद्धार के लिए बातें कही गई है। अन्य पुराणों के समाज श्रीमद्भागवत ऋषि वेदव्यास द्वारा लिखे गए हैं। ऋषि सुखदेव जी जो वेद व्यास के बेटे थे, उन्होंने श्रीमद्भागवत का राजा परीक्षित को सुनाया था राजा परीक्षित जो उनकी ऋषि द्वारा साथ दिनों में तक्षक सांप द्वारा मारे जाने के लिए साथ दिया गया था।

श्रीमद् भागवत पुराण का सार

इसमें भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया है। विष्णु और कृष्णावतार की कथाओं का ज्ञान कराती इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण ज्ञान प्राप्त होता है। श्रीमद् भागवत पुराण विद्या का अक्षय भंडार है। यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला है।

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भागवत पुराण में क्या लिखा है?

भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है।

भागवत पुराण भागवत गीता में क्या अंतर है?

भगवद गीता ओर भागवत पुराण दोनों के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी है। भागवत पुराण अठारह पुराणों में से एक भक्ति शास्त्र है और भगवद गीता महाभारत में से लीया गया योग शास्त्र है। भागवत गीता, भागवत पुराण का ही भाग है। इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं।

इस पुराण में वर्णाश्रम-धर्म-व्यवस्था को पूरी मान्यता दी गई है तथा स्त्री, शूद्र और पतित व्यक्ति को वेद सुनने के अधिकार से वंचित किया गया है। ब्राह्मणों को अधिक महत्त्व दिया गया है। वैदिक काल में स्त्रियों और शूद्रों को वेद सुनने से इसलिए वंचित किया गया था कि उनके पास उन मन्त्रों को श्रवण करके अपनी स्मृति में सुरक्षित रखने का न तो समय था और न ही उनका बौद्धिक विकास इतना तीक्ष्ण था। किन्तु बाद में वैदिक ऋषियों की इस भावना को समझे बिना ब्राह्मणों ने इसे रूढ़ बना दिया और एक प्रकार से वर्गभेद को जन्म दे डाला।

‘श्रीमद्भागवत पुराण’ में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। पुराणों के लक्षणों में प्राय: पाँच विषयों का उल्लेख किया गया है, किन्तु इसमें दस विषयों-सर्ग-विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति और आश्रय का वर्णन प्राप्त होता है (दूसरे अध्याय में इन दस लक्षणों का विवेचन किया जा चुका है)। यहाँ श्रीकृष्ण के गुणों का बखान करते हुए कहा गया है कि उनके भक्तों की शरण लेने से किरात् हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन और खस आदि तत्कालीन जातियाँ भी पवित्र हो जाती हैं।

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