सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की सबसे बेहतरीन कविताएं, देखे सूर्यकांत त्रिपाठी की परिमल, Parimal ( Suryakant Tripathi Nirala)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की सबसे बेहतरीन कविताएं, देखे सूर्यकांत त्रिपाठी की परिमल, Parimal ( Suryakant Tripathi Nirala)
Parimal : हमारे हिंदी साहित्य में कई तरह के कवि हुए हैं, जिसमें से सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी एक जाने-माने कवि हैं। इनका जन्म 21 फरवरी 18 96 को हुआ था, वही यह एक प्रसिद्ध कवि और लेखक थे जिन्होंने कई तरह की कविताओं की रचना की है।
सूर्यकांत त्रिपाठी की परिमल
निराला एक छायावादी कवि रही है और वह कविताओं के सांसद निबंध उपन्यास और कहानियों के भी रचेता रहे हैं। उनकी कविताएं बहुत लोकप्रिय रही है, जिन्हें आज भी स्कूलों में पढ़ाया जाता है और उन्हें समझा जाता है। इन्होंने अपने जीवन काल में कई तरह की ऐसी रचनाएं की हैं जो कि काफी यादगार रही हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कोन है
जब सूर्यकान्त बहुत छोटे थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था। माता के जाने के बाद, निराला का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों में बीता। इनका विवाह मनोहरी देवी के साथ हुआ। मनोहरी ने निराला को हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित किया। 20 वर्ष की आयु में निराला ने हिन्दी सीखी। विवाह के बाद उनका जीवन बचपन की तुलना में ठीक चल रहा था।
लेकिन 22 वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का भी देहांत हो जाता है, इनकी एक पुत्री भी थी। पुत्री के विवाह के बाद, वह भी विधवा हो गयी और कुछ समय बाद उसका भी देहांत हो गया। उन दोनों की मृत्यु का कारण 1918 के समय में चल रही फ्लू की बिमारी थी। पत्नी व पुत्री की मृत्यु के बाद, निराला का जीवन नीरस हो गया।
इन्होने सामाजिक न्याय और शोषण पर बहुत गहराई से लिखा। अपने जीवन के अंतिम पलों में, इस तरह के लेखन कार्य से वे मानसिक विकार से ग्रस्त हो गये और उन्हें सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री (रांची) में भर्ती कराया गया।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविताएँ
- अणिमा
- अनामिका
- अपरा
- अर्चना
- आराधना
- कुकुरमुत्ता
- गीतगुंज
- गीतिका
- जन्मभूमि
- जागो फिर एक बार
- तुलसीदास
- तोड़ती पत्थर
- ध्वनि
- नये पत्ते
- परिमल
- प्रियतम
- बेला
- भिक्षुक
- राम की शक्ति पूजा
- सरोज स्मृति
- उपन्यास (Novels)
सूर्यकान्त त्रिपाठी के उपन्यास –
- अप्सरा
- अलका
- इन्दुलेखा
- काले कारनामे
- चमेली
- चोटी की पकड़
- निरुपमा
- प्रभावती
- कहानियाँ (Stories)
सूर्यकान्त त्रिपाठी की कहानियाँ –
- चतुरी चमार
- देवी
- सुकुल की बीवी
- साखी
- लिली
परिमल कविता
परिमल एक कविता संग्रह है। इसकी रचना सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने की थी। यह पहली बार ई॰ सन् 29 में प्रकाशित हुआ।
रंकुश नग्न,
हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न,
अन्तिम आशा के कानों में
स्पन्दित हम – सबके प्राणों में
अपने उर की तप्त व्यथाएँ,
क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ
कह जाते हो
और जगत की ओर ताककर
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर,
सह जाते हो।
कह जातेहो-
“यहाँकभी मत आना,
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख
यहाँ है सदा उठाना,
क्रूर यहाँ पर कहलाता है शूर,
और हृदय का शूर सदा ही दुर्बल क्रूर;
स्वार्थ सदा ही रहता परार्थ से दूर,
यहाँ परार्थ वही, जो रहे
स्वार्थ से हो भरपूर,
जगतकी निद्रा, है जागरण,
और जागरण जगत का – इस संसृति का
अन्त – विराम – मरण
अविराम घात – आघात
आह! उत्पात!
यही जग – जीवन के दिन-रात।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका स्पन्दन,
हास्य से मिला हुआ क्रन्दन।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका जीवन,
दिवस का किरणोज्ज्वल उत्थान,
रात्रि की सुप्ति, पतन;
दिवस की कर्म – कुटिल तम – भ्रान्ति
रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति,
सदा अशान्ति!”
4. ध्वनिअभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।
5. मौनबैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।