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Top Best Moral Stories for Childrens in Hindi PDF | बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानिया

Top Best Moral Stories for Childrens in Hindi PDF | बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानिया

Moral Stories for Childrens: आज हम आपको बच्चों के लिए हिंदी पीडीएफ में कुछ कहानियां शेयर करने जा रहा है जो कि, काफी अद्भुत और रोचक है, इसके माध्यम से आप बच्चों को कई तरह की शिक्षा प्रदान कर सकते हैं और आपको एक शानदार अनुभव मिलेगा. इन कहानियों को आप अपने दोस्तों और परिवारों के साथ शेयर कर सकते हैं, साथ ही आप इन के माध्यम से बच्चों को उचित शिक्षा भी प्रदान कर सकते हैं. इस तरह की कई स्टोरीज है जो कि, बच्चों के लिए काफी शिक्षाप्रद होती है आज हम आपको कुछ ऐसी ही इसके बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें आप नीचे पढ़ सकते हैं.

Top Best Stories in Hindi Childrens

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सहयात्री का महत्त्व Short Stories in Hindi with Moral

किसी नगर में ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण कुमार रहता था। एक दिन उसे किसी दूसरे गांव में जाने की आवश्यकता आ पड़ी। ब्राह्मण-पुत्र जाने को तैयार हुआ तो उसकी मां बोली-‘बेटा !    अकेले मत जाओ। किसी को साथ लिवा जाओ।

ब्राह्मण कुमार बोला-‘मां ! भयभीत क्यों होती हो ? मार्ग निष्कंटक है। रास्ते में किसी प्रकार का भय नहीं है। मैं अकेला ही चला जाऊंगा।    किंतु ब्राह्मणी को संतोष न हुआ।

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वह एक बावली पर गई और चिमटी से पकड़कर एक केकड़ा उठा लाई। उसने केकड़ा कपूर की एक डिबिया में बंद किया और डिबिया थैले में डालकर उसे बेटे को देती हुई बोली-‘अब जाओ।

रास्ते में यह केकड़ा तुम्हारा सहायक रहेगा। युवक अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। गर्मी का मौसम था। भीषण गर्मी पड़ रही थी। कुछ दूर चलने पर युवक पसीने-पसीने होकर हांफने लगा।

 

विश्राम करने के लिए वह एक छायादार वृक्ष की धनी छांव में जाकर बैठ गया। उसे कुछ आराम-सा मिला तो उसे नींद आने लगी। वृक्ष के तने से सिर टिकाकर और थैला पास में रखकर वह वहीं सो गया।

उस वृक्ष की जड़ के एक खोखल में एक काला सर्प रहता था। युवक के थैले से कपूर की गंध सूंघकर वह थैले की ओर बढ़ने लगा। सर्प को कपूर की गंध बहुत प्रिय लगती है,    अतः उसने युवक को तो छेड़ा नहीं, सीधा थैले में जा घुसा और लगा कपूर की डिबिया को खोलने।

ज्यों ही उसने डिबिया खोली कि केकड़ा बाहर निकल आया।    उसने सर्प के गले में अपने सड़ांसी की तरह पैने दांत चुभा दिए और उसका रक्त चूसने लगा। सर्प ने बहुत-सी पटखनियां लगाईं, किंतु केकड़े की पकड़ न छूटी।

अंततः सर्प का दम ही निकल गया। नींद खुलने पर युवक ने निगाह दौड़ाई तो उसने समीप ही मरा हुआ सर्प देखा। केकड़ा उस मृत सर्प की गरदन से चिपका हुआ पड़ा था।

फिर जब कुछ दूर कपूर की खुली हुई डिबिया पर उसकी निगाह गई तो वह समझ गया कि इसी केकड़े ने काले नाग को मारा है। उसे अपनी माता का कथन स्मरण हो आया और वह सहयात्री का महत्त्व भी समझ गया।

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यह कथा सुनाने के बाद चक्रधारी ने सुवर्णसिद्ध से कहा-‘मित्र ! इसलिए मैं कहता हूं कि अकेले मत जाना। कोई साथ के लिए मिल जाए तो वह उत्तम रहेगा।

यात्रा के समय साथ रहने वाला अत्यंत निर्बल व्यक्ति भी उपकारक ही होता है।’ चक्रधारी की उपर्युक्त बात सुनने के बाद सुवर्णसिद्ध को संतोष हो गया और वह चक्रधारी से आज्ञा लेकर वापस लौट पड़ा।

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बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानिया

किसी सरोवर में भारुंड नाम का एक पक्षी रहता था। उसका पेट तो एक ही था, किंतु मुख दो थे। एक दिन वह सरोवर के किनारे अपना भोजन तलाश कर रहा था।

तभी उसे वहां अमृत के समान मीठा एक फल मिल गया उसने जब फल खाया तो उसे वह फल बहुत स्वादिष्ट लगा। उसने सोचा कि ऐसा मीठा फल उसे पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ,    निश्चय ही भाग्य के कारण उसे आज यह फल मिला है।

पहले मुख द्वारा कही गई यह बात सुनकर मारुंड का दूसरा मुख बोला-‘यदि ऐसा ही बात है तो इस मधुर फल को मुझे भी तो चखाओ।    देखू कि कितना स्वादिष्ट है यह।’

यह सुनकर प्रथम मुख बोला-‘अरे भाई ! तुम चखकर क्या करोगे? मैंने चख लिया या तुमने चख लिया, बात एक ही है। पेट तो हमारा एक ही है।    जाएगा तो पेट में ही न। इससे तो अच्छा है कि जितना फल बच गया है उसे हम अपनी पत्नी को दे दें।

वह खाएगी तो प्रसन्न हो जाएगी।’    ऐसा कहकर उसने वह फल अपनी पली को दे दिया। उस मीठे फल को खाकर उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न हुई और वह अपने पति से विशेष प्रेमभाव व्यक्त करने लगी।

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किंतु दूसरा मुख इस बात पर नाराज हो गया और अपमान-सा महसूस करने लगा। उस दिन से वह उदास रहने लगा। कुछ दिन बाद दूसरे मुख को एक विषफल मिल गया।    तब उसने पहले मुख से कहा-‘तुमने उस दिन मुझे मीठा फल न देकर मेरा अपमान किया था।

देख, आज मुझे विषफल मिला है। आज मैं इसे खाकर तुझसे उस दिन के अपमान का बदला चुकाऊंगा।’    प्रथम मुख बोला-‘मूर्ख ! ऐसा मत कर लेना। तुमने विषफल खाया तो हम दोनों ही मर जाएंगे।’ किंतु दूसरे मुख ने उसके परामर्श पर ध्यान न दिया।

उसने वह विषफल खा लिया।   परिणाम वही हुआ, जो अपेक्षित था। उस पक्षी का प्राणांत हो गया यह कथा सुनकर चक्रधारी को संतोष हो गया। वह बोला-तुमने ठीक ही कहा है मित्र !   सज्जनों का परामर्श सर्वदा हितकारी होता है।

अब तुम जाओ। किंतु जाने से पहले मेरा भी एक परामर्श सुनते जाओ। अकेले मत जाना। क्योंकि यात्रा में एकाकी जाना अच्छा नहीं रहता।    कहा भी गया है कि स्वादिष्ट अथवा मीठी वस्तु को अकेले नहीं खाना चाहिए।

 

यदि साथ के सभी व्यक्ति सो गए हों तो उनमें से एक व्यक्ति को अकेले नहीं जागते रहना चाहिए।    मार्ग में एकाकी यात्रा नहीं करनी चाहिए और किसी गूढ़ विषय पर अकेले विचार करना भी हितकर नहीं होता।

व्यक्ति को चाहिए कि मार्ग में एकाकी जाने की अपेक्षा किसी डरपोक व्यक्ति को ही साथ ले ले। एक कर्कट के साथ रहने पर ही एक ब्राह्मण अपना जीवन बचाने में सफल हो पाया था।’

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